भारी भरकम सामान ढ़ोने वाला एक विशालकाय वाहन अचानक मुझे अपने सर के ऊपर दिखाई देता है.
2.
रिस-रिस कर टपकतीं गीली भावनाओं की तेज़ाबी बूँदें, पढ़ता हूँ इस टपकन की बारीक लकीरों को ओढ़ता काल्पनिक अपनी मुक्ति के विचारों को रेशमी एक चादर की तरह, बैठ जाता कभी रंगीन अतीत के बासी किसी फूल पर, धूल से सनी मधुमक्खी की मानिन्द कि स्थगित हो जाती चिर यात्रा समय के विशालकाय वाहन की, ठहर जातीं श्वेत-श्याम घड़ियाँ और ठहर जाता मैं भी।